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Ashtang Hridyam 1:6-6.5

Chapter 1 Sutra 6-6.5 वायुः पित्तं कफश् चेति त्रयो दोषाः समासतः ॥ ६ ॥ विकृता-अविकृता देहं घ्नन्ति ते वर्तयन्ति च । आयुर्वेद में संक्षेप में तीन दोष माने जाते है - वात, पित, तथा कफ। ये तीनों वात आदि दोष विकृत होकर शरीर का विनाश कर देते है और अविकृत होकर जीवनदान करते हैं अथवा स्वास्थ्य-सम्पादन करने में सहायक हैं। In Ayurveda, there are three basic doshas - Vata, Pita, and Kapha. Perfect balance of three Doshas leads to health, imbalance in Tridosha leads to diseases.  

Ashtang Hirdya 1:5-5.5

Chapter 1 Sutra 5-5.5 काय-बाल-ग्रहोर्ध्वाङ्ग-शल्य-दंष्ट्रा-जरा-वृषान् ॥ ५ ॥ अष्टाव् अङ्गानि तस्याहुश् चिकित्सा येषु संश्रिता । आयुर्वेद की आठ शाखाएँ हैं। काया चिकित्सा - सामान्य दवा बाला चिकित्सा - बाल चिकित्सा( कौमारभृत्य) ग्रहा चिकित्सा – मनोरोग ( भूत विद्या) उरध्वंगा चिकित्सा- कान, नाक, गले और आंखों के रोग और उपचार (गर्दन और ऊपर क्षेत्र) शल्य शल्यक्रिया - शल्य चिकित्सा दंष्ट्रा चिकित्सा - विष विज्ञान जारा चिकित्सा – रसायन विज्ञान वृष चिकित्सा – वाजिकरण चिकित्सा इन्हीं अंगों में सम्पूर्ण चिकित्सा आश्रित हैं। There are eight branches of Ayurveda. Kaya chikitsa - General medicine Bala Therapy - Pediatrics (virginity) Graha Medicine - Psychiatry (Ghosts) Urdhwanga therapy - diseases and treatment of ear, nose, throat and eyes (Neck and top area) Shalya kriya - Surgery Danshtra chikitsa - Toxicology Jaara Chikitsa – Chemistry (Giriatrics) Vrsh Chikista - Aphrodisiac therapy These branches have full medical dependents.