Chapter 1 Sutra 1
रागादि-रोगान् सततानुषक्तान् अ-शेष-काय-प्रसृतान् अ-शेषान्।
औत्सुक्य-मोहा-रति-दाञ् जघान यो ऽ-पूर्व-वैद्याय नमो ऽस्तु तस्मै ॥1॥
हर समय तथा सम्पूर्ण शरीर में फैले हुये और उत्सुकता विष्यो के प्रति उत्कण्ठा मोह तथा अरति को देने वाले और इस प्रकार के मन तथा शरीर को संत्तप्त करने वाले जो राग द्वेष लोभ मोह आदि मानसिक रोग तथा वात पित्त कफ आदि शरीरीक रोग तथा उत्पत्ति मरण जनित जो रोग हैं उन सबको सामूल नष्ट करने वाले अपूर्व वैद्य को मैं वाग्भट नमस्कार करता हूँ।
Salutation to The Unique and Rare Physician, who has
destroyed, without any residue all the
diseases like Raga (lust, anger, greed, arrogance, jealousy, selfishness, ego), which are
constantly associated with the body, which is spread all over the body, giving rise to disease like anxiety,delusion and restlessness. This salutation is done to Lord Dhanwantari.
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