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Showing posts with the label #Ayurvedic

Top six qualities of Vata body, you have never heard before. (Ayurveda)

Ashtanga Hridayam SutraSthan Chapter-1 verse 10.5 तत्र Tatra रूक्षो rūkṣo लघुः laghuḥ शीतः śītaḥ खरः kharaḥ सूक्ष्मश् sūkṣmaś चलो calo ऽनिलः। anilaḥ Hindi Top six qualities of Vata, you have never heard before Vata consists of the following six qualities. Ruksha Guna: dryness The Vata body person has dry skin or low moisture in the skin; the skin can be easily scratched, and have wrinkle lines over the body. The air/ Vata property also brings dryness to the body and tissue hence the Vata body has ruksha guna as one of the main qualities. Laghu Guna: lightness As air is very light and quick in nature, similar is the nature of Vata body people. Due to this, Vata people, despite not having a good memory; are quick in learning and are very active. Laghu guna (lightness) is the opposite of heaviness which is a quality of Kapha dosha. So every food, substance, herbs which increase Kapha or have hea

HOW DOES YOUR BODY TYPE FORMED BY NATURE?

SutraSthan Chapter 1 Verse 9.0-10.0 शुक्रार्तव- śukrārtava स्थैर् sthair जन्मादौ janmādau विषेणेव viṣeṇeva विष- viṣa क्रिमेः krimeḥ ॥ 9 ॥ तैश् taiś च ca तिस्रः tisraḥ प्रकृतयो prakṛtayo हीन hīna मध्योत्तमाः madhyottamāḥ पृथक् pṛthak । सम- sama धातुः dhātuḥ समस्तासु samastāsu श्रेष्ठा śreṣṭhā निन्द्या nindyā द्वि- dvi दोष-जाः doṣa-jāḥ ॥ 10 ॥ हिन्दी At the time of conception, genetically various traits are formed in the children like the gender, facial and body feature, eyes color, height, and weight, personality traits, (other factors also), hair color, etc. and according to Ayurveda, the body types are also formed at the same time. It is believed that as the child’s traits came from parents similarly body types also come from parents whichever dosha is dominant at the time of conception. The prakrti or body constitution is of 7 types according to the combination o

आपका पाचन तंत्र आपके स्वास्थ्य के बारे में क्या कहता है?

सूत्र स्थान अध्याय -1 श्लोक - 8.5 कोष्ठः Kostha क्रूरो kruro मृदुर् mrdur मध्यो madhyo मध्यः madhyah स्यात् syat तैः taih समैर् samair अपि api ।8.5। English आपका शौच आपके स्वास्थ्य के बारे में बहुत कुछ कहता है और आप इसे नियमित रूप से पहचान भी सकते हैं। यदि आप उन लोगों में से हैं जो कब्ज के कारण लंबे समय तक शौचालय में बैठते हैं या जो दिन में कई बार शौचालय जाते हैं, और यदि आप जानना चाहते हैं कि आपका आंत्र / शौच आपके स्वास्थ्य के बारे में क्या कहता है, तो आप सही जगह पर आए। अगर आपको लगता है कि आपका शौच सामान्य है और आप स्वस्थ हैं, तो भी पढ़ते रहें क्योंकि आप कुछ ना कुछ नया सीखने वाले हैं। इससे पहले कि मैं आपको कुछ बताऊं यदि आपको मेरे द्वारा साझा किया गया ज्ञान आपको पसंद आया, तो कृपया लाइक और शेयर बटन को दबाये और नीचे कमेंट करें। जब भी हम बीमार होते हैं और डॉक्टर के पास जाते हैं, तो वे हमसे एक प्रमुख सवाल पूछते हैं जो हमारे मल त्याग या शौच के बारे में होता है। आपका मल त्याग आपके स्वा

What does your digestive tract aka poop say about your health?

Sutra Sthan Chapter 1 Verse 8.5 कोष्ठः Kostha क्रूरो kruro मृदुर् mrdur मध्यो madhyo मध्यः madhyah स्यात् syat तैः taih समैर् samair अपि api ।8.5। हिन्दी After reading the title most of you will be making a funny face or maybe taking a good laugh, but your bowel/poop says a lot about your health and you can also identify it on regular basis. If you are one of those who sit in the toilet for long hours because of constipation or who frequently visits the toilet several times a day, and you want to know what your bowel/ poop says about your health, then you came on the right place to educate yourself and others. If you think your bowel movement is normal and you are healthy then also keep reading because you will be going to learn something. Before I tell you something if you liked the knowledge I shared with you all, please be generous to press the like, and share button and comme

How digestive fire and doshas are related?

  Chapter 1 Sutra 8 तैर् tair भवेद् bhaved विषमस् vismaः तीक्ष्णो tīkṣṇo मन्दश् mandaś चाग्निः cāgniः समैः samaiः समः samaः ॥ ८ ॥ English विभिन्न प्रकार के दोषों के प्रभाव के आधार पर पाचन आग को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है: विषम अग्नि (वात द्वारा प्रभाव): पाचन अनुचित, अप्रत्याशित होगा। विषम अग्नि के कारण होने वाले रोग भी प्रकृति में वातजन्य होंगे और उनका उपाय वात नाशक विधियों द्वारा भी किया जाएगा। यदि चूल्हे में आग हवा से महसूस की जाती है, तो कभी चूल्हे में आग जलती है और कभी-कभी यह हिलती है, कभी यह पक जाती है और कभी-कभी नहीं पकती है। उसी तरह, व्यक्ति को कभी-कभी उच्च भूख लगती है और कभी-कभी बहुत कम भूख लगती है। तीक्ष्ण अग्नि (पित्त से प्रभावित): पाचन क्रिया मजबूत और शक्तिशाली होगी। भोजन की एक बड़ी मात्रा बहुत जल्दी पच जाएगी और शरीर में जलन, प्यास आदि हो जाएगी। यदि आग के गड्ढे में आग बहुत अधिक है, तो यह पानी के छिड़काव से कम हो जाता है, इसी तरह से विरेचन उपचारों का उपयोग तीक्ष्ण अग्नि को कम करने के लिए किया जाता है। मंदा अ

How tridoshas are spread in body and in a day?

Chapter 1 Sutra 6.5-7.5 ते व्यापिनो ऽपि हृन्-नाभ्योर् अधो-मध्योर्ध्व-संश्रयाः ॥ ७ ॥ वयो-ऽहो-रात्रि-भुक्तानां ते ऽन्त-मध्यादि-गाः क्रमात् । त्रिदोष पूरे शरीर में मौजूद हैं, लेकिन उनकी उपस्थिति विशेष रूप से विशेष भागों में देखी जाती है। यदि आप शरीर को तीन भागों में विभाजित करते हैं, तो छाती के ऊपर वाले भाग में कफा दोष का वर्चस्व होता है, छाती और नाभि के बीच पित्त का प्रभुत्व होता है, नीचे नाभि वाले हिस्से पर वात का प्रभुत्व होता है। इसी तरह, किसी व्यक्ति के जीवन में, दिन और रात (अलग-अलग) में, पहले भाग में कफा का वर्चस्व कायम रहता है, दूसरे भाग पर पित्त का प्रभुत्व होता है और तीसरे भाग पर वात का प्रभुत्व होता है। भोजन करते समय और पाचन के दौरान, पहले, दूसरे और तीसरे भाग में क्रमशः कफा, पित्त और वात का प्रभुत्व होता है। टिप्पणियाँ : वात वृद्धावस्था (60 वर्ष की आयु के बाद) में, दोपहर में (दोपहर 3 से 7 बजे के बीच), देर रात (2 बजे से सुबह 6 बजे तक) और भोजन के पाचन के अंत में प्रमुख है। पित्त मध्यम आयु (20 से 60 वर्ष के बीच), मध्याह्न (11 से 4 बजे के

Ashtang Hridyam 1:6-6.5

Chapter 1 Sutra 6-6.5 वायुः पित्तं कफश् चेति त्रयो दोषाः समासतः ॥ ६ ॥ विकृता-अविकृता देहं घ्नन्ति ते वर्तयन्ति च । आयुर्वेद में संक्षेप में तीन दोष माने जाते है - वात, पित, तथा कफ। ये तीनों वात आदि दोष विकृत होकर शरीर का विनाश कर देते है और अविकृत होकर जीवनदान करते हैं अथवा स्वास्थ्य-सम्पादन करने में सहायक हैं। In Ayurveda, there are three basic doshas - Vata, Pita, and Kapha. Perfect balance of three Doshas leads to health, imbalance in Tridosha leads to diseases.  

Ashtang Hirdya 1:5-5.5

Chapter 1 Sutra 5-5.5 काय-बाल-ग्रहोर्ध्वाङ्ग-शल्य-दंष्ट्रा-जरा-वृषान् ॥ ५ ॥ अष्टाव् अङ्गानि तस्याहुश् चिकित्सा येषु संश्रिता । आयुर्वेद की आठ शाखाएँ हैं। काया चिकित्सा - सामान्य दवा बाला चिकित्सा - बाल चिकित्सा( कौमारभृत्य) ग्रहा चिकित्सा – मनोरोग ( भूत विद्या) उरध्वंगा चिकित्सा- कान, नाक, गले और आंखों के रोग और उपचार (गर्दन और ऊपर क्षेत्र) शल्य शल्यक्रिया - शल्य चिकित्सा दंष्ट्रा चिकित्सा - विष विज्ञान जारा चिकित्सा – रसायन विज्ञान वृष चिकित्सा – वाजिकरण चिकित्सा इन्हीं अंगों में सम्पूर्ण चिकित्सा आश्रित हैं। There are eight branches of Ayurveda. Kaya chikitsa - General medicine Bala Therapy - Pediatrics (virginity) Graha Medicine - Psychiatry (Ghosts) Urdhwanga therapy - diseases and treatment of ear, nose, throat and eyes (Neck and top area) Shalya kriya - Surgery Danshtra chikitsa - Toxicology Jaara Chikitsa – Chemistry (Giriatrics) Vrsh Chikista - Aphrodisiac therapy These branches have full medical dependents.  

Ashtang hridyam 1:4-4.5

  Chapter 1 Sutra 4-4.5 तेभ्यो ऽति-विप्रकीर्णेभ्यः प्रायः सार-तरोच्चयः ॥ 4 ॥     क्रियते ऽष्टाङ्ग-हृदयं नाति-संक्षेप-विस्तरम् । उन आयुर्वेदिक पाठ्य पुस्तकों से, जो बहुत विस्तृत हैं और इसलिए उनका अध्ययन करना बहुत कठिन है, केवल सार को एकत्र करके अष्टांग हृदय में प्रस्तुत किया जाता है, जो न तो बहुत छोटा है और न ही बहुत विस्तृत है। Maharishi Vagbhat's says that out of those ancient systems scattered here and there, it has been collected by taking the best of the best (essence) part. The name of the collection-book presented is Ashtanga hridyam. In it, the topics mentioned in the ancient systems are neither stated in very brief nor in very detail.  

Ashtang Hirdya 1:3-3.5

  Chapter 1 Sutra 3 ब्रह्मा स्मृत्वायुषो वेदं प्रजापतिम् अजिग्रहत् । सो अश्विनौ तौ सहस्राक्षं सो अत्रि-पुत्रादिकान् मुनीन् ॥ ३ ॥ ते ऽग्निवेशादिकांस् ते तु पृथक् तन्त्राणि तेनिरे । Lord Brahma, remembering Ayurveda, taught it to Prajapathi, he in turn taught it to Ashwini Kumaras (twins), they taught it to Sahasraksa (Lord Indra), he taught it to Atri’s son (Atreya Punarvasu) and other sages, they taught it to Agnivesa and others and they (Agnivesha and other disciples ) composed treatises, each one separately. भगवान ब्रह्मा ने आयुर्वेद को याद करते हुए, इसे प्रजापति को सिखाया, उन्होंने बदले में अश्विनी कुमार को सिखाया, उन्होंने इसे सहस्राक्ष (भगवान इंद्र) को पढ़ाया, उन्होंने अत्रि के पुत्र को सिखाया (अत्रेय पुण्रवसु) और अन्य ऋषि, उन्होंने इसे अग्निवेश और अन्य लोगों को पढ़ाया और उन्होंने (अग्निवेश और अन्य) शिष्यों) ने ग्रंथों की अलग अलग रचना की।  

Ashtang HIrdya 1:2

  Chapter 1 Sutra 2 आयुः-कामयमानेन धर्मार्थ-सुख-साधनम् । आयुर्वेदोपदेशेषु विधेयः परम् आदरः ॥ २ ॥ अब हम यहॉं से आयुष्कामीय ( द्रीर्घायु तथा पुर्णायु की कामना ) करने वालों के लिये जो हितकर हैं, उस अध्याय की व्याख्या करेंगे जैसा कि आत्रेय आदि ऋषियों ने पहले कहा हैं। आयु की इच्छा रखने वाले पुरूष जो की धर्म, अर्थ (धन), सुख प्राप्त करने का साधन हैं, उन्हें आयुर्वेद के शिक्षण में विश्वास होना चाहिए तथा आयुर्वेद में बताये निर्देशों का प्रमुख रूप से आदर करना चाहियें। Now we will explain the chapter which is beneficial for those who wish to have Ayushkamya (wishing for long life and full life) from here, as the sages like Atreya have said earlier. Men who desire age, who are the means of attaining Dharma (religion), Artha (wealth), sukha (happiness), should have faith in the teaching of Ayurveda and should respect the instructions stated in Ayurveda prominently.  

Ashtang Hirdya 1:1

  Chapter 1 Sutra 1 रागादि-रोगान् सततानुषक्तान् अ-शेष-काय-प्रसृतान् अ-शेषान्। औत्सुक्य-मोहा-रति-दाञ् जघान यो ऽ-पूर्व-वैद्याय नमो ऽस्तु तस्मै ॥1॥ हर समय तथा सम्पूर्ण शरीर में फैले हुये और उत्सुकता विष्यो के प्रति उत्कण्ठा मोह तथा अरति को देने वाले और इस प्रकार के मन तथा शरीर को संत्तप्त करने वाले जो राग द्वेष लोभ मोह आदि मानसिक रोग तथा वात पित्त कफ आदि शरीरीक रोग तथा उत्पत्ति मरण जनित जो रोग हैं उन सबको सामूल नष्ट करने वाले अपूर्व वैद्य को मैं वाग्भट नमस्कार करता हूँ। Salutation to The Unique and Rare Physician, who has destroyed, without any residue all the diseases like Raga (lust, anger, greed, arrogance, jealousy, selfishness, ego), which are constantly associated with the body, which is spread all over the body, giving rise to disease like anxiety,delusion and restlessness. This salutation is done to Lord Dhanwantari. 

Amazing, unbelievable health benefits of Indian gooseberry a.k.a Amla part I

Hey, there here I am with an amazing post article related to our super food Indian gooseberry also known as amla in the Indian subcontinent. Hmm, let me tell you my exposure and interaction with amla. The first memory I have of eating amla and actually buying amla is from Khari bawli, Chandni Chowk, Delhi my native place.  I used to sit on the back seat of my father's scooter and we went to the market to buy amla candy popularly known as Amla ka murabba every year in winter seasons. Being a small child I am furious to eat the candy because of its sweet taste without knowing the good effect on my body. The other form which I remember is chamanprash or chyawanprash or something similar. That’s the first thing me and my sister used to eat before going to school and last thing before sleeping down on the bed. Back then also many forms are available in the market like amla powder, chutney and you can name it but these two were my favorite and still I e

AYURVEDIC BENEFITS OF APPLE

AYURVEDIC BENEFITS OF APPLE Primary taste: Sweet, astringent Potency: Cool Taste after digestion: Sweet (if sweet)/ pungent (if sour) Doshas: Pitta and Kapha Apple are good for pitta and kapha, and too dry for vata unless well cooked and spiced. The skin of apple is hard to digest and can cause gastric problems. Do not eat seed of apple, for they are astringent in nature and bitter and can cause vata aggravation. Sweet apples are slightly astringent in taste, with cooling effect, and has sweet effect after digestion. Sour apples are mainly astringent in taste, also with cooling effect, and has pungent effect after digestion. Apple is the best source of fiber which keeps the bowls clean and helps those on dieting by preventing hunger. Apple contains malic acid and tartaric acid, which is helpful in preventing liver and digestion problem. Apple keep the cholesterol level low and help in strengthening the blood. Apple per day can remove all toxic, waste product from your body