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Ashtang HIrdya 1:2

 


Chapter 1 Sutra 2







आयुः-कामयमानेन धर्मार्थ-सुख-साधनम् ।

आयुर्वेदोपदेशेषु विधेयः परम् आदरः ॥ २ ॥



अब हम यहॉं से आयुष्कामीय ( द्रीर्घायु तथा पुर्णायु की कामना ) करने वालों के लिये जो हितकर हैं, उस अध्याय की व्याख्या करेंगे जैसा कि आत्रेय आदि ऋषियों ने पहले कहा हैं। आयु की इच्छा रखने वाले पुरूष जो की धर्म, अर्थ (धन), सुख प्राप्त करने का साधन हैं, उन्हें आयुर्वेद के शिक्षण में विश्वास होना चाहिए तथा आयुर्वेद में बताये निर्देशों का प्रमुख रूप से आदर करना चाहियें।

Now we will explain the chapter which is beneficial for those who wish to have Ayushkamya (wishing for long life and full life) from here, as the sages like Atreya have said earlier. Men who desire age, who are the means of attaining Dharma (religion), Artha (wealth), sukha (happiness), should have faith in the teaching of Ayurveda and should respect the instructions stated in Ayurveda prominently.  

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  Chapter 1 Sutra 1 रागादि-रोगान् सततानुषक्तान् अ-शेष-काय-प्रसृतान् अ-शेषान्। औत्सुक्य-मोहा-रति-दाञ् जघान यो ऽ-पूर्व-वैद्याय नमो ऽस्तु तस्मै ॥1॥ हर समय तथा सम्पूर्ण शरीर में फैले हुये और उत्सुकता विष्यो के प्रति उत्कण्ठा मोह तथा अरति को देने वाले और इस प्रकार के मन तथा शरीर को संत्तप्त करने वाले जो राग द्वेष लोभ मोह आदि मानसिक रोग तथा वात पित्त कफ आदि शरीरीक रोग तथा उत्पत्ति मरण जनित जो रोग हैं उन सबको सामूल नष्ट करने वाले अपूर्व वैद्य को मैं वाग्भट नमस्कार करता हूँ। Salutation to The Unique and Rare Physician, who has destroyed, without any residue all the diseases like Raga (lust, anger, greed, arrogance, jealousy, selfishness, ego), which are constantly associated with the body, which is spread all over the body, giving rise to disease like anxiety,delusion and restlessness. This salutation is done to Lord Dhanwantari. 

How digestive fire and doshas are related?

  Chapter 1 Sutra 8 तैर् tair भवेद् bhaved विषमस् vismaः तीक्ष्णो tīkṣṇo मन्दश् mandaś चाग्निः cāgniः समैः samaiः समः samaः ॥ ८ ॥ English विभिन्न प्रकार के दोषों के प्रभाव के आधार पर पाचन आग को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है: विषम अग्नि (वात द्वारा प्रभाव): पाचन अनुचित, अप्रत्याशित होगा। विषम अग्नि के कारण होने वाले रोग भी प्रकृति में वातजन्य होंगे और उनका उपाय वात नाशक विधियों द्वारा भी किया जाएगा। यदि चूल्हे में आग हवा से महसूस की जाती है, तो कभी चूल्हे में आग जलती है और कभी-कभी यह हिलती है, कभी यह पक जाती है और कभी-कभी नहीं पकती है। उसी तरह, व्यक्ति को कभी-कभी उच्च भूख लगती है और कभी-कभी बहुत कम भूख लगती है। तीक्ष्ण अग्नि (पित्त से प्रभावित): पाचन क्रिया मजबूत और शक्तिशाली होगी। भोजन की एक बड़ी मात्रा बहुत जल्दी पच जाएगी और शरीर में जलन, प्यास आदि हो जाएगी। यदि आग के गड्ढे में आग बहुत अधिक है, तो यह पानी के छिड़काव से कम हो जाता है, इसी तरह से विरेचन उपचारों का उपयोग तीक्ष्ण अग्नि को कम करने के लिए किया जाता है। मंदा अ